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जहां परमात्मा हैं वहीं आनंद है - गोपालानंद महाराज

कासिमाबाद ।‌ गाजीपुर  निराकार के रूप में सर्वत्र विद्यमान परमात्मा ज्ञानियों को आनंद  प्रदान करते हैं किंतु भक्तों को आनंद देने ...

कासिमाबाद ।‌ गाजीपुर
 निराकार के रूप में सर्वत्र विद्यमान परमात्मा ज्ञानियों को आनंद  प्रदान करते हैं किंतु भक्तों को आनंद देने के लिए उन्हें निराकार से साकार बनाकर आना पड़ता है ।  श्री राम अवतार अनेक संस्कृतियों को जाति एवं भाषाओं को खंडित भारतवर्ष को जोड़ने के लिए  उन्होंने अवध और मिथिला की संस्तुतियों को जोड़ा। कहा कि राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर के लिए धनुष यज्ञ का आयोजन किया । राजा जनक ने कहा कि जो शिव पिनाक को खंडन करेगा वह सीता से नाता जोड़ेगा । उस धनुष को तोड़ने के लिए विश्व के कई राजा और राजकुमार पहुंचे लेकिन सभी विफल रहे ।  ऐसे में राजा जनक ने भरी सभा में कहा कि आज धरती वीरों से विहीन हो गई है । सभी अपने घर जाएं ।  इसके बाद लक्ष्मण को क्रोध आया और उन्होंने कहा कि अगर श्री राम की आज्ञा हो तो धनुष क्या पूरे ब्रह्मांड को गेंद की तरह उठा लूं। महाराज जी ने कहा कि धनुष अहंकार का प्रतीक है और राम ज्ञान का प्रतीक है ।  जब अहंकारी व्यक्ति को ज्ञान का स्पर्श होता है तब अहंकार का नाश हो जाता है । श्री राम में वह अहंकार नहीं था और श्री राम ने विश्वामित्र की आज्ञा पाकर धनुष को तोड़ दिया ।  जिसका अर्थ पूरे विश्व में दुष्टों को सावधान करना था कि अब कोई  कितना भी शक्तिशाली राक्षस बृति का व्यक्ति हो वह अब जीवित नहीं बचेगा। धनुष टूटने का पता चलने पर परशुराम जी का स्वयंवर सभा में आना एवं श्री राम लक्ष्मण से तर्क वितर्क करके संतुष्ट होना कि श्री राम, पूरे विश्व का कल्याण करने में सक्षम है । 
 धनुष भंग के पश्चात श्री सीता जी श्री राम के गले में वर्णमाला डालकर उनका वर्णन करती हैं और मिथिला में जश्न का आरंभ होता है  देवता भी आकाश से फूलों की वर्षा करते हैं। उपस्थित श्रद्धालुओं में अत्यंत आनंद पूर्वक भाव से स्वयंवर प्रसंग में उत्सव मनाया ।

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