कासिमाबाद कभी-कभी दो समुदायों के बीच का फैसला नजीर के रूप में देखने सुनने को अक्सर मिलते हुए सुना जाता है पर वह फैसला परंपरा बन जाएगा ऐसा क...
कासिमाबाद
कभी-कभी दो समुदायों के बीच का फैसला नजीर के रूप में देखने सुनने को अक्सर मिलते हुए सुना जाता है पर वह फैसला परंपरा बन जाएगा ऐसा कम ही देखने को मिलता है । जी हां हम बात कर रहे हैं जिले के बाराचवर विकासखंड के मांटा गांव की । इस गांव में आज से 65 वर्ष पूर्व प्रशासन द्वारा लिया गया फैसला गंगा जमुनी तहजीब का मिसाल बन गया । मोहर्रम की नवीं को कत्ल की रात 10:00 बजे तक हिन्दू पक्ष राम जानकी मंदिर में होली के गीत गाते हैं । इसके बाद मुस्लिम पक्ष मंदिर के सामने बने चौक पर ताजिया रखकर पुरी रात खेल के साथ अपना करतब दिखाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों समय दोनों समुदाय मिलकर शांति पूर्वक इस परंपरा का निर्वाहन करते चले आ रहे हैं। आज प्रशासन का वह फैसला मांटा गांव में भाईचारे की मिसाल पेश करता दिख रहा है ।
जनपद के बरेसर थाना क्षेत्र का मांटा गांव 65 वर्ष पूर्व होली का त्यौहार मोहर्रम के नवीं तिथि अर्थात कत्ल की रात को एक साथ पड़ गया था। इसको लेकर दोनों समुदायों में काफी तनातनी हो गई थी। मुस्लिम पक्ष होली के त्यौहार के दिन गाना बजाना से रोकने के लिए आतुर था । वहीं हिंदू पक्ष रंग गुलाल के साथ होली के गीत गाने के लिए अडिग था। ग्रामीणों के अनुसार मामला इतना तूल पकड़ लिया कि प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा । उस समय के तत्कालीन अधिकारियों ने ग्रामीणों के बीच यह व्यवस्था दिया कि दोनों पक्ष मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए आपस में टकराव से बचेंगे तथा अपना-अपना त्यौहार सकुशल संपन्न करेंगे । इसी समझौते के तहत हिंदू पक्ष के लोगों को रात 10:00 बजे तक राम जानकी मंदिर पर होली के गीत गाने की इजाजत दी गई और मुस्लिम पक्ष को उसके बाद चौक पर ताजिया रखकर मातम मनाते हुए खेल आदि करने का समय दिया गया । उस समय प्रशासन द्वारा लिए गए फैसले को गांव के दोनों पक्षों में परंपरा के रूप में अपना लिया गया। दोनों पक्ष उसको आज भी वखूबी निभाते चले आ रहे हैं । हिंदू पक्ष कत्ल की रात को दस बजे तक होली के गीत गाकर खुशियां मनाता है तो मुस्लिम पक्ष उसके बाद अपनी ताजियों को लाकर चौक पर रखकर मातम करते हुए अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं । यह परंपरा आज से पूर्व लगातार 65 वर्षों से चली आ रही है । ग्रामीण भी इस पल का बेसब्री से इंतजार करते हैं। यही कारण है कि इस मोहर्रम के आते ही प्रशासन काफी सतर्क यहां पर हो जाता है । इस बात का उल्लेख बरेसर थाने के त्यौहार रजिस्टर में भी दर्ज है। इस दिन पुलिस एवं प्रशासन सुरक्षा की दृष्टिकोण से खास इंतजाम करता है । इस खास अवसर को दोनों समुदाय काफी संजीदगी और तहजीब के साथ इस परंपरा को कायम रखकर गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेस करते चले आ रहें हैं।
मांटा गांव में आज देखी जा सकती है 65 वर्ष पूर्व के फैसले की तस्वीर
बाराचवर विकासखंड के मांटा गांव में मिली जुली आबादी निवास करती है। यहां पर हिंदुओं की सभी जातियों के साथ मुस्लिम समुदाय के शिया और सुन्नी वर्ग के लोग रहते हैं । सिया और सुन्नी वर्ग मुहर्रम का त्योहार अन्य जगहों से हटकर काफी मिल जुल कर मानते हैं । इस संबंध में इस गांव के मासूम हैदर ने बताया कि हिंदू अपनी मन्नतें पूरी होने पर इमाम हुसैन को ताजिया चढ़ाते पेश करते हैं । वहीं सिया और सुन्नी समुदाय अपनी अपनी ताजियों का मिलान करते हुए कर्बला में दफन करते हैं । जो हर जगह से हटकर एक मिसाल है । मांटा गांव निवासी 75 वर्षीय रघुवर राजभर ने बताया कि आज से 65 वर्ष पूर्व मुहर्रम और होली का पर्व एक साथ पड़ गया था। मुस्लिम पक्ष होली के गीत आदि गाने से मना कर रहे थे। इसके साथ जब-जब मोहर्रम पड़ता था राम जानकी मंदिर के पास कोई धार्मिक कार्य करने से मना करते थे। प्रशासन का उस समय का फैसला आज भी जीवंत है। गांव के मासूम हैदर बताते हैं कि कत्ल की रात को 10:00 बजे तक हिंदू भाई होली के गीत गाकर खुशियां मनाते हैं तो मुस्लिम वर्ग गम करते हुए मोहर्रम मनाते हैं। इस संबंध में थाना अध्यक्ष राजेश त्रिपाठी बताते हैं कि यह बातें हैं । त्योहार रजिस्टर में भी दर्ज है । मंगलवार को पड़ने वाले कत्ल की रात को शांतिपूर्ण समाप्त कराने के लिए प्रशासन अभी से सतर्क है ।
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